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फंसाना आदत है तुम्हारी..


तुम भी बहुत खूब हो,                                                पर हम भी कुछ कम नहीं..

बातों में फंसाना आदत है तुम्हारी,
पर फंसना हमारी आदत नहीं…

क्यों दिल लगा बैठे हो हमसे,
जानते हो मेरे अंदर दिल नहीं…

संभल जाओ ये वक्त है अभी,
ये वक्त है कल ठहरेगा नहीं…

क्यों बार बार मनाते हो हमे,
जानते हो हम कभी मानेंगे ही नहीं…

जानते हैं तुम जिद्दी बहुत हो,
पर कम जिद्दी तो हम भी नहीं…

यूंही तुम बातें ना बढाया करो,
ये बातें कभी बढ़ेंगी ही नहीं…

                         

                           मीरा कुमार…

21 thoughts on “फंसाना आदत है तुम्हारी..”

  1. बातों में फंसाना आदत है तुम्हारी,
    पर फंसना हमारी आदत नहीं…
    bahut badhiya kavita……
    shabdon ke taal mel se bani behtarin kavita,

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  2. हम भी प्यारे शख्स के सिवा किसी से युहीं उलज़ते नहीं ,
    वरना आप जैसी शक्सियत खयालो में भी आती नहीं !

    Nice Lines!!

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